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Saturday 19 January 2019

जो मिल गया वो मिट्टी है.... जो ना मिला, वो सोना है....

अजीब सी ये दुनिया है,
सबका अलग-अलग रोना है...
जो मिल गया वो मिट्टी है,
जो ना मिला, वो सोना है....


गाँव वालों की, शहरों में बसने की चाहत है,
शहर वाले "फार्म हाउस " में ढूंढते राहत हैं..
दोनों को, इसी उधेड़बुन में, मन का सुकून खोना है..
जो मिल गया वो मिट्टी है,
जो ना मिला, वो सोना है....


शादी के पहले, एक -दूसरे के लिए ,मर मिटने को आकुल थे,
सब रिश्ते -नाते तोड़ कर, एक दूजे को,
व्याकुल थे....
शादी के बाद, छोटी-छोटी बातों में,
एक- दूसरे के आँखों को,आंसुओं से भिगोना है...
अब मिल गया तो मिट्टी है, जो ना मिला था सोना था....


जिसके माँ-बाप हैं,
उसको, इसकी कदर नहीं,
कोई बदनसीब ऐसा भी,
जिसे किसी अपने की खबर नहीं..
कोई माँ- बाप के प्यार को भी ज़ंजीर समझता है,
कोई सर पे प्यार से हाथ रखने वाले, को भी तरसता है..
जो हैं, माँ -बाप तो मिट्टी हैं,
जो हैं नहीं तो सोना है....


किसी को सालों से सिर्फ एक बच्चे की चाहत है,
कोई आज़ादी के  नाम पे ,अनचाही गृहस्थी से आहत है..
वाह री दुनिया!!!
सिर्फ, दूसरों का ही, सपन सलोना है...
वो जो मिला खुद को, वो मिट्टी है...
वो जो मिला दूसरों को, वो सोना है!!!!

                                                इंदू वर्मा 

Wednesday 9 January 2019

तेरी बेटी बड़ी हो गयी है ...

माँ  तेरी बेटी बड़ी हो  गयी  है |
कल तक थी जो नासमझ,
आज अपने पैरों  पर  खड़ी हो  गयी है
माँ तेरी बेटी बड़ी हो गयी है.....


आंसुओं को पलकों में समेटना अब उसे आता है ,
जो झगड़ती थी, तुझसे हर बात पर,
आज निभाती, सास -बहु का नाता है,
करती थी मनमानी, फिर भी दुलारी थी तुम्हारी,
और तू हंस कर कहती थी...
"ये लड़की बिलकुल नकचढ़ी हो गयी है"|
माँ वो बेटी बड़ी हो गयी है....


जो करती थी मनमाने खर्च,
आज वो घर चलाती है |
महीने के कुछ पैसे जोड़ कर,
वो भी सुकून पाती है|
उसके फैशन देख कर, तुम भी मुस्काती थी और कहती ---
"ये  लड़की तो पटाखों की लड़ी हो गयी है "
वो बेटी आज तेरी बड़ी हो गयी है |


उसके नाज़-नखरे तुम अपने सर उठाती थी,
उसके आराम में ही तुम भी ख़ुशी पाती थी|
वो लड़की, पूरे परिवार की सहूलियत की कड़ी हो गयी है,
हाँ , माँ वो तेरी बेटी आज बड़ी हो गयी है||


कब  हुई सुबह, कब हुई शाम,
ये अब उसको खबर नहीं|
खाना, ऑफिस, बच्चे बूढ़े, संभालती सब,
जिसको थी वक़्त की कदर नहीं|
वो तेरी बेटी , २४ घंटे वक़्त पे चलने वाली घड़ी हो  गयी है,
खुश हो  जा  माँ !!..
तेरी  सरचढ़ी,नकचढ़ी  बेटी  आज बड़ी  हो  गयी है ..…


                                                                     
                                                                         Indu verma

Friday 9 November 2018

शब्द मेरे और एहसास भी मेरा...

नींद मेरी, पर ख्वाब तुम्हारा,
सपनो के सागर में, अरमान तुम्हारा
न कोई शिकवा , न शिकायत किसी से, 
भले ही चेहरा मेरा, पर पहचान तुम्हारा
ज़िन्दगी के पन्ने पलटते हुए, न जाने कब शाम हो गयी,
रिश्तों के भंवर में ऐसी उलझी कि, ज़िन्दगी यूँ ही तमाम हो गयी
भूल गयी खुद के शौक और चाहत , जो कभी थे लड़कपन में,
अब तो सुकून भी बन गया है, आराम तुम्हारा
न सोना, न चाँदी, न कोई उपहार मांगता है,
ये दिल एक छोटा सा, अधिकार तुमसे मांगता है
कभी जो रूठ जाऊं तुमसे, तो आकर बस मना लेना
न मानू फिर भी, एक बार गले लगा लेना
धीरे से कह देना मुझसे “ बहुत ख़ूबसूरत है ये प्यार हमारा,"
प्रिये, और रूठना तो सिर्फ है अधिकार तुम्हारा ”
                                                       ---इंदू वर्मा

चाहत और ज़िन्दगी

चाहते कुछ और, मिल कुछ और जाता है,
ज़िन्दगी का तो यही, उलझा बही-खाता है.
तन्हाई ढूंढो, तो महफ़िल में,
आँखों की नमी छुपानी होती है.
रोने को कंधे चाहो तो,
खुद की परछाई भी बेगानी होती है .
सपनो के पीछे भागो तो,
अपने कहीं खो से जाते हैं.
कहीं एक पल रुक भी जाओ
अपने फिर भी कहाँ नज़र आते हैं !
इस भागम-भाग जीवन में
जाने क्या खोते, क्या पाते हैं,
कोई अपना नहीं रह जाता,
सब, बस आते और जाते हैं......
                               --इंदू वर्मा

सिर्फ एक बार

आज क्यूकर हूँ मैं बेचैन
क्यों छलक पड़े अनायास ही मेरे नैन..
किस्मत ने फिर एक तमाचा जड़ दिया
लड़की होने का दोष, मेरे ही सर मढ़ दिया!!

मैं लड़की हूँ, इसमें मेरा क्या दोष है,
फिर समाज को मुझपर क्यों रोष है??
क्या "लड़का" होना कोई उपलब्धि या गर्व की बात है??
क्यों नहीं सोचते लोग,
अपनी किस्मत अपने हाथ है

मैं ये नहीं कहती की बेटो को दुत्कारो
मगर बेटी को भी ज़रा प्यार से पुकारो..
एक की किस्मत में कलियाँ
तो दूसरे की किस्मत में क्यों लिखी गालिया...
एक बार प्यार से पुकार के तो देखो...

सिर्फ एक बार!!!
                      इंदू वर्मा 

ज़िन्दगी

जीवन एक संघर्ष है
कभी दुख , कभी हर्ष है
कभी मेले, कभी तन्हाईयाँ हैं,
कभी मीठी बातें, कभी कड़वी सच्चाइयाँ हैं....

कभी दिन, कभी रात है,
कभी दोस्ती, कभी घात है
कभी कंटीली झाड़ियां,कभी फूलों की गात है
कभी जीत की ख़ुशी, कभी मात ही मात है.....

जीवन एक प्यास है
कुछ कर गुजरने की आस है
पर इक्षाओं का दास है
मृत्यु के पास है....

मिली है एक ही ज़िन्दगी,
चाहे इसे  खुल के जी लो
या फिर ज़िन्दगी तो जी ही लेगी तुमको
वो जीले, या तुम जी लो .....

                      इंदू वर्मा 

Sunday 4 November 2018

विडम्बना

एक लड़की, जो तितली की तरह मंडराती है घर के आँगन में,
जो होती है, माँ की प्यारी,पिता की राजदुलारी
जिसकी ख़ुशी से जुडी होती हैं परिवार की खुशियां
ज़िसके दुःख से जुडी होती हैं दुःख की अनुभूतिया
जो वर्षों तक माँ -बाप के सुख दुःख की साथी होती हैं
वो एक ही झटके में परायी हो जाती है
जब किसी अनजाने से ब्याह दी जाती है..
ये कैसी विडम्बना!!!!

                                 इंदू वर्मा